हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद कैसे करें? (Hindi to Sanskrit translate)
संस्कृत हिन्दी की जननी है। इस नाते संस्कृत के अधिकांश शब्द हिन्दी में पाये जाते हैं। अतः हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद करने में संस्कृत शब्दों को लिंग, वचन तथा कारक के अनुसार रखा जाता है और क्रिया धातु की दी जाती है, लेकिन यह सरल कार्य नहीं है। संस्कृत में विभक्तियाँ शब्द के साथ लगी रहती हैं, लेकिन उन्हें वाक्य में किसी प्रकार कहीं भी रखा जा सकता है। यह भी एक कला है और उसके कुछ नियम हैं।
अनुवाद करने के साधारण नियम
(1) अनुवाद करते समय सबसे पहले हमें वाक्य का कर्ता ढूँढ़ना चाहिए। क्रिया से पहले कौन के उत्तर में आनेवाली वस्तु कर्ता होती है।
(2) कर्ता यदि एकवचन में हो तो प्रथमा एकवचन का रूप और द्विवचन में हो तो प्रथमा का द्विवचन का रूप रखना चाहिए।
(3) इसके पश्चात् कर्ता के पुरुष पर ध्यान देना चाहिए कि कर्ता प्रथम पुरुष में है, कि मध्यम पुरुष में है, कि उत्तम पुरुष में है।
(4) कर्ता के उसी पुरुष पुरुष और वचन जान लेने के पश्चात् क्रिया के काल का निश्चय करना चाहिए फिर क्रिया के उस काल के रूपों में से कर्ता के पुरुष तथा वचन वाला एक रूप छाँटकर लिख देना चाहिए।
(5) तत्पश्चात् वाक्य के अन्य शब्दों के कारक तथा वचनों के रूप भी यथास्थान लिख देना चाहिए।
(6) शब्दों के स्थान के लिए संस्कृत में स्वतन्त्रता रहती है। आप चाहे कर्ता पहले रखिये या कर्म अथवा क्रिया, कोई प्रतिबन्ध नहीं है।
(7) कर्ता और क्रिया के पुरुष के वचन में साम्य होता है अर्थात् जिस पुरुष और जिस वचन में कर्ता होगा, क्रिया भी और वचन की होगी।
(8) विशेषण या विशेष्य के अनुसार ही लिंग, वचन और विभक्तियाँ होती हैं, जैसे-
लिंग | ज्येष्ठ = बड़ा भाई |
ज्येष्ठ भगिनी = बड़ी बहिन | |
ज्येष्ठ कलत्रं = बड़ी पत्नी | |
वचन | हरिते लते = दो हरी बेलें |
पक्वानि फलानि = पके फल | |
विभक्ति | तं बालकम्, तस्मिन् ग्रामे = उस गाँव में |
(9) वर्तमान काल की वचन क्रिया में ‘स्म’ जोड़ देने से भूतकाल की क्रिया बन जाती है।