History | प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत | Audio Download | Part-2
प्राचीन भारत
प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत
प्राचीन भारतीय इतिहास के विषय में जानकारी मुख्यतः चार स्रोतों से प्राप्त होती है—
- धर्मग्रंथ
- ऐतिहासिक ग्रंथ
- विदेशियों का विवरण व
- पुरातत्व संबंधी साक्ष्य
4. पुरातत्व संबंधी साक्ष्य से मिलनेवाली जानकारी
- भारतीय पुरातत्वशास्त्र का पितामह ( Father of Indian Archeology ) सर एलेक्जेण्डर कनिंघम को कहा जाता है ।
- 1400 ई.पू. के अभिलेख बोगाज कोई ‘ ( एशिया माइनर ) से वैदिक देवता मित्र वरुण , इन्द्र और नासत्य ( अश्विनी कुमार ) के नाम मिलते हैं ।
- मध्य भारत में भागवत धर्म विकसित होने का प्रमाण यवन राजदूत ‘ होलियोडोरस ‘ के वेसनगर ( विदिशा ) गरुड़ स्तम्भ लेख से प्राप्त होता है । सर्वप्रथम भारतवर्ष का जिक्र हाथीगुम्फा अभिलेख में है ।
- सर्वप्रथम दुर्भिक्ष का जानकारी देनेवाला अभिलेख सौहगौरा अभिलेख है । इस अभिलेख में संकट काल में उपयोग हेतु खाद्यान्न सुरक्षित रखने का भी उल्लेख है । सर्वप्रथम भारत पर होनेवाले हूण आक्रमण की जानकारी भीतरी स्तंभ लेख से प्राप्त होती है ।
- सती प्रथा का पहला लिखित साक्ष्य एरण अभिलेख ( शासक भानुगुप्त ) से प्राप्त होती है ।
- सातवाहन राजाओं का पूरा इतिहास उनके अभिलेखों के आधार पर लिखा गया है ।
- रेशम बुनकर की श्रेणियों की जानकारी मंदसौर अभिलेख से प्राप्त होती है ।
- कश्मीरी नवपाषाणिक पुरास्थल बुर्जहोम से गर्तावास ( गड्ढा घर ) का साक्ष्य मिला है । इनमें उतरने के लिए सीढ़ियों होती थीं । यहाँ मनुष्य के साथ उसके पालतू कुत्ते को भी दफनाने की प्रथा प्रचलित थी ।
- प्राचीनतम सिक्कों को आहत सिक्के कहा जाता है , इसी को साहित्य में काषार्पण कहा गया है ।
- सर्वप्रथम सिक्कों पर लेख लिखने का कार्य यवन शासकों ने किया ।
- समुद्रगुप्त की वीणा बजाती हुई मुद्रा वाले सिक्के से उसके संगीत प्रेमी होने का प्रमाण मिलता है ।
- अरिकमेडू ( पुदुचेरी के निकट ) से रोमन सिक्के प्राप्त हुए हैं ।
नोट :- सबसे पहले भारत के संबंध बर्मा ( सुवर्णभूमि वर्तमान में म्यांमार ) मलाया ( स्वर्णद्वीप ) कंबोडिया ( कंबोज ) और जावा ( यवद्वीप ) से स्थापित हुए ।
महत्वपूर्ण अभिलेख
अभिलेख | शासक |
रुद्रदामन हाथीगुप्फा अभिलेख ( तिथि रहित अभिलेख ) | कलिंग राज खारवेल |
जूनागढ़ ( गिरनार ) अभिलेख | रुद्रदामन |
नासिक अभिलेख | गौतमी बलश्री |
प्रयाग स्तम्भ लेख | समुद्रगुप्त |
ऐहोल अभिलेख | पुलकेशिन- II |
मन्दसौर अभिलेख | मालवा नरेश यशोवर्मन |
ग्वालियर अभिलेख | प्रतिहार नरेश भोज |
भितरी एवं जूनागढ़ अभिलेख | स्कन्दगुप्त |
देवपाड़ा अभिलेख | बंगाल शासक विजयसेन |
नोट : अभिलेखों का अध्ययन इपीग्राफी कहलाता है ।
- उत्तर भारत के मंदिरों की कला की शैली नागर शैली एवं दक्षिण भारत के मंदिरों की कला द्राविड़ शैली कहलाती है । दक्षिणापथ के मंदिरों के निर्माण नागर और द्रविड़ दोनों शैलियों का प्रभाव पड़ा , अतः यह वेसर शैली कहलाती है ।
- पंचायतन शब्द मंदिर रचना शैली से संबंधित है । एक हिन्दू मंदिर तब पंचायतन शैली का कहलाता है जब मुख्य मंदिर चार सहायक मंदिरों से घिरा होता है । पंचायतन मंदिर के उदाहरण हैं कंदरिया महादेव मंदिर ( खजुराहो ) . ब्रह्मेश्वर मंदिर ( भुवनेश्वर ) लक्ष्मण मंदिर ( खजुराहो ) लिंगराज मंदिर ( भुवनेश्वर ) दशावतार मंदिर ( देवगढ़ उ . प्र ) गोंडेश्वर मंदिर ( महाराष्ट्र )
2. प्रागैतिहासिक काल
- इतिहास का विभाजन प्रागितिहास ( Pre history ) , आघ इतिहास ( Proto history ) एवं इतिहास ( History ) तीन भागों में किया गया है ।
- जिस काल में मनुष्य ने घटनाओं का कोई लिखित विवरण उद्धृत नहीं किया , उसे प्रागैतिहासिक काल ‘ कहते हैं ।
- “ आद्य ऐतिहासिक काल ” उस काल को कहते हैं , जिस काल में लेखन कला के प्रचलन के बाद उपलब्ध लेख पढ़े नहीं जा सके हैं ।
- मानव विकास के उस काल को इतिहास कहा जाता है , जिसका विवरण लिखित रूप में उपलब्ध है ।
- ‘ ज्ञानी मानव ( होमोसपियंस ) का प्रवेश इस धरती पर आज से लगभग तीस या चालीस हजार वर्ष पूर्व हुआ ।
- ‘ पूर्व – पाषाण युग या पूरा पाषाणकाल के मानव की जीविका का मुख्य आधार शिकार था शिकार पुरा पाषाणकाल में आदि मानव के मनोरंजन के भी साधन थे ।
- आग का आविष्कार पुरा – पाषाणकाल में एवं पहिये का नव – पाषाणकाल में हुआ ।
- मनुष्य में स्थायी निवास की प्रवृत्ति नव – पाषाणकाल में हुई तथा उसने सबसे पहले कुत्ता को पालतू बनाया ।
- मनुष्य ने सर्वप्रथम ताँबा धातु का प्रयोग किया तथा उसके द्वारा बनाया जाने वाला प्रथम औजार कुल्हाड़ी ( प्राप्ति स्थल अतिरम्पक्कम ) था।
- कृषि का आविष्कार नव – पाषाणकाल में हुआ । प्रागैतिहासिक अन्न उत्पादक स्थल मेहरगढ़ पश्चिमी बलूचिस्तान में अवस्थित है । कृषि के लिए अपनाई गई सबसे प्राचीन फसल गेहूँ ( पहली फसल ) एवं जौ थी लेकिन मानव द्वारा सर्वप्रथम प्रयुक्त अनाज चावल था ।
- कृषि का प्रथम उदाहरण मेहरगढ़ से प्राप्त हुआ है । कोल्डिहवा का संबंध चावल के प्राचीनतम साक्ष्य से है ।
- भारत में पूर्व प्रस्तर युग के अधिकांश औजार स्फटिक ( पत्थर ) के बने थे ।
- रॉबर्ट बुस फुट पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 1863 ई . में भारत में पुरापाषाणकालीन औजारों की खोज की । पल्लावरम् नामक स्थान पर प्रथम भारतीय पुरापाषण कलाकृति की खोज हुई थी।
- भारत में मध्य पाषणकाल के विषय में जानकारी सर्वप्रथम 1867 ई में हुई जब सी . एल . कार्लाइल ने विंध्यक्षेत्र में लघु पाषाणोपकरण ( Microliths ) खोज निकाले भारत में मानव अस्थिपंजर , मध्य पाषाणकाल से ही सर्वप्रथम प्राप्त होने लगता है ।
- भारत में नवपाषाणकालीन सभ्यता का प्रारंभ ईसा पूर्व चार हजार के लगभग हुआ ।
- भारत का सबसे प्राचीन नगर मोहनजोदड़ो था सिंधी भाषा में जिसका अर्थ है मृतको का टीला ।
- असम का श्वेतभ्रू गिवन भारत में पाया जाने वाला एक मात्र मानवाभ कपि है ।
- इनामगाँव ताम्रपाषाण युग की एक बड़ी बस्ती थी । इसका संबंध जोर्वे संस्कृति से है
- भारत में शिवालक की पहाड़ी से जीवाश्म का प्रमाण मिला है ।
- प्रागैतिहासिक काल में भीमबेटका गुफाओं के शैलचित्र के लिए प्रसिद्ध है
- भारत में मनुष्य संबंधी सबसे पहला प्रमाण नर्मदा घाटी में मिला है
नोट : भारतीय नागरिक सेवा के अधिकारी रिजले प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने प्रथम बार वैज्ञानिक आधार पर भारत की जनसंख्या का प्रजातीय विभेदीकरण किया ।
3. सिन्धु सभ्यता
- रेडियोकार्बन Cl4 जैसी नवीन विश्लेषण पद्धति के द्वारा सिन्धु सभ्यता की सर्वमान्य तिथि 2400 ईसा पूर्व से 1700 ईसा पूर्व मानी गयी है । इसका विस्तार त्रिभुजाकार है ।
नोट : तिथि निर्धारण की कार्बन -14 ( CH ) की खोज अमेरिका के प्रसिद्ध रसायन शास्त्री वी ० एफ ० लिवि द्वारा 1946 ई . में की गयी थी । इस पद्धति में जिस पदार्थ में कार्बन -14 की मात्रा जितनी ही कम रहती है , वह उतनी ही प्राचीन मानी जाती है ।
- सिन्धु सभ्यता की खोज 1921 में रायबहादुर दयाराम साहनी ने की ।
- सिन्धु सभ्यता को आद्य ऐतिहासिक ( Protohistoric ) अथवा कांस्य ( Bronze ) युग में रखा जा सकता है । इस सभ्यता के मुख्य निवासी द्रविड़ एवं भूमध्य सागरीय थे ।
- सर जान मार्शल ( भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के तत्कालीन महानिदेशक ) ने 1924 ई . में सिन्धु घाटी सभ्यता नामक एक उन्नत नगरीय सभ्यता पाए जाने की विधिवत घोषणा की ।
- सिन्धु सभ्यता के सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल दाश्क नदी के किनारे स्थित सुतकागेंडोर ( बलूचिस्तान ) , पूर्वी पुरास्थल हिण्डन नदी के किनारे आलमगीरपुर ( जिला मेरठ , उत्तर प्र . ) , उत्तरी पुरास्थल चिनाव नदी के तट पर अखनूर के निकट माँदा ( जम्मू – कश्मीर ) व दक्षिणी पुरास्थल गोदावरी नदी के तट पर दाइमाबाद ( जिला अहमदनगर , महाराष्ट्र ) ।
- सिन्धु सभ्यता या सैंधव सभ्यता नगरीय सभ्यता थी । सैंधव सभ्यता से प्राप्त परिपक्व अवस्था वाले स्थलों में केवल 6 को ही बड़े नगर की संज्ञा दी गयी है ; ये हैं — मोहनजोदड़ो , हड़प्पा , गणवारीवाला , धौलावीरा , राखीगढ़ी एवं कालीबंगन ।
- स्वतंत्रता प्राप्ति पश्चात् हड़प्पा संस्कृति के सर्वाधिक स्थल गुजरात : में खोजे गये हैं ।
नोट : सिन्धु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल मोहनजोदड़ो हैं जबकि भारत में इसका सबसे बड़ा स्थल राखीगढ़ी ( घग्घर नदी ) है जो हरियाणा के हिसार जिला में स्थित है । इसकी खोज 1963 ई . में सूरजभान ने की थी ।
- लोयल एवं सुतकोतदा- सिन्धु सभ्यता का बन्दरगाह था ।
- जुते हुए खेत और नक्काशीदार ईंटों के प्रयोग का साक्ष्य कालीबंगन से प्राप्त हुआ है ।
- मोहनजोदड़ो से प्राप्त स्नानागार संभवतः सैंधव सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत है , जिसके मध्य स्थित स्नानकुंड 11.88 मीटर लम्बा 7.01 मीटर चौड़ा एवं 2.43 मीटर गहरा है ।
- अग्निकुण्ड लोथल एवं कालीबंगन से प्राप्त हुए हैं ।
- मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक शील पर तीन मुख वाले देवता ( पशुपति नाथ ) की मूर्ति मिली है । उनके चारों ओर हाथी गैंडा चीता एवं भैंसा विराजमान हैं ।
- मोहनजोदड़ो से नर्तकी की एक कांस्य मूर्ति मिली है ।
- हड़प्पा की मोहरों पर सबसे अधिक एक शृंगी पशु का अंकन मिलता है । यहाँ से प्राप्त एक आयताकार मुहर में स्त्री के गर्भ से निकलता पौधा दिखाया गया है ।
- मनके बनाने के कारखाने लोथल एवं चन्हूदड़ो में मिले हैं ।
- सिन्धु सभ्यता की लिपि भावचित्रात्मक है । यह लिपि दायीं से बायी ओर लिखी जाती थी । जब अभिलेख एक से अधिक पंक्तियों का होता था तो पहली पंक्ति दायीं से बायी और दूसरी बायीं से दायी ओर लिखी जाती थी ।
नोट :- लेखनकला की उचित प्रणाली विकसित करने वाली पहली सभ्यता सुमेरिया की सभ्यता थी ।
- सिन्धु सभ्यता के लोगों ने नगरों तथा घरों के विन्यास के लिए ग्रीड पद्धति अपनाई ।
- घरों के दरवाजे और खिड़कियाँ सड़क की ओर न खुलकर पिछवाड़े की ओर खुलते थे । केवल लोथल नगर के घरों के दरवाजे मुख्य सड़क की ओर खुलते थे ।
- सिन्धु सभ्यता में मुख्य फसल थी – गेहूँ और जौ।
- सैंधव वासी मिठास के लिए शहद का प्रयोग करते थे ।
- मिट्टी से बने हल का साक्ष्य बनमाली से मिला है ।
- रंगपुर एवं लोथल से चावल के दाने मिले हैं जिनसे धान की खेती होने का प्रमाण मिलता है । चावल के प्रथम साक्ष्य लोथल से ही प्राप्त हुए हैं।
- सुरकोतदा , कालीबंगन एवं लोथल से सैंधवकालीन घोड़े के अस्थिपंजर मिले हैं ।
- तौल की इकाई संभवतः 16 के अनुपात में थी ।
- सैंधव सभ्यता के लोग यातायात के लिए दो पहियों एवं चार पहियों वाली बैलगाड़ी या भैंसागाड़ी का उपयोग करते थे ।
- मेसोपोटामिया के अभिलेखों में वर्णित मेलूहा शब्द का अभिप्राय सिन्धु सभ्यता से ही है ।
- संभवतः हड़प्पा संस्कृति का शासन वणिक वर्ग के हाथों में था
- सैंधववासी सूती एवं ऊनी वस्त्रों का प्रयोग करते थे
- मनोरंजन के लिए सैंधववासी मछली पकड़ना शिकार करना पशु – पक्षियों को आपस में लड़ाना, चौपड़ और पासा खेलना आदि साधनों का प्रयोग करते थे ।
- सिन्धु सभ्यता के लोग काले रंग से डिजाइन किये हुए लाल मिट्टी के बर्तन बनाते थे ।
- सिन्धु घाटी के लोग तलवार से परिचित नहीं थे ।
- कालीबंगन एक मात्र हड़प्पाकालीन स्थल था . जिसका निचला शहर ( सामान्य लोगों के रहने हेतु ) भी किले से घिरा हुआ था कालीबंगन का अर्थ है काली चूड़ियाँ यहाँ से पूर्व हड़प्पा स्तरों के खेत जोते जाने के और अग्निपूजा की प्रथा के प्रमाण मिले हैं
- पर्दा – प्रथा एवं वेश्यावृति सैंधव सभ्यता में प्रचलित थी ।
- शवों को जलाने एवं गाइने यानी दोनों प्रथाएँ प्रचलित थीं । हड़प्पा में शवों को दफनाने जबकि मोहनजोदड़ो में जलाने की प्रथा विद्यमान थी । लोथल एवं कालीबंगा में युग्म समाधियाँ मिली हैं ।
- सैंधव सभ्यता के विनाश का संभवत सबसे प्रभावी कारण बाढ़ था ।
- आग में पकी हुई मिट्टी को टेराकोटा कहा जाता है ।
4. वैदिक सभ्यता
- वैदिककाल का विभाजन दो भागों 1 ऋग्वैदिक काल – 1500-1000 ई पू . और 2 उत्तर वैदिककाल – 1000-600 ई . पू . में किया गया है ।
- आर्य सर्वप्रथम पंजाब एवं अफगानिस्तान में बसे । मैक्समूलर ने आर्यों का मूल निवास स्थान मध्य एशिया को माना है । आर्यों द्वारा निर्मित सभ्यता वैदिक सभ्यता कहलाई । यह एक ग्रामीण सभ्यता थी आर्यों की भाषा संस्कृत थी ।
नोट : आर्य शब्द भाषा समूह को इंगित करता है ।
- पिग्गट ने हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो को एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वाँ राजधानी कहा है ।
- सिन्धु सभ्यता के लोग धरती को उर्वरता की देवी मानकर उसकी पूजा किया करते थे ।
- वृक्ष – पूजा एवं शिव पूजा के प्रचलन के साक्ष्य भी सिन्धु सभ्यता से मिलते हैं
- स्वास्तिक चिह्न संभवतः हड़प्पा सभ्यता की देन है । इस चिह्न से सूर्योपासना का अनुमान लगाया जाता है । सिन्धु घाटी के नगरों में किसी भी मंदिर के अवशेष नहीं मिले हैं ।
- सिन्धु सभ्यता में मातृदेवी की उपासना सर्वाधिक प्रचलित थी ।
- पशुओं में कुबड़ वाला साँड़ इस सभ्यता के लोगों के लिए विशेष पूजनीय था ।
- स्त्री मृण्मूर्तियाँ ( मिट्टी की मूर्तियाँ ) अधिक मिलने से ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि सैंधव समाज मातृसत्तात्मक था ।
- आर्यों के प्रशासनिक इकाई आरोही क्रम से इन पाँच भागों में बँटा था – कुल ग्राम , विश् , जन , राष्ट्र ग्राम के मुखिया ग्रामिणी , विश् का प्रधान विशपति एवं जन के शासक राजन कहलाते थे ।
- राज्याधिकारियों में पुरोहित एवं सेनानी प्रमुख थे । वसिष्ठ रुढ़िवादी एवं विश्वामित्र उदार पुरोहित थे
- सूत , रथकार व कम्मादि नामक अधिकारी रत्नी कहे जाते थे । इनकी संख्या राजा सहित करीब 12 हुआ करती थी
- पुरप – दुर्गपति एवं स्पश – जनता की गतिविधियों को देखने वाले गुप्तचर होते थे ।
- वाजपति – गोचर भूमि का अधिकारी होता था ।
- उग्र – अपराधियों को पकड़ने का कार्य करता था ।
नोट : ऋग्वेद में किसी तरह के न्यायाधिकारी का उल्लेख नहीं है ।
- सभा एवं समिति राजा को सलाह देने वाली संस्था थी । सभा श्रेष्ठ एव संभ्रांत लोगों की संस्था थी जबकि समिति सामान्य जनता का प्रतिनिधित्व करती थी । इसके अध्यक्ष को ईशान कहा जाता था । स्त्रियाँ सभा एवं समितियों में भाग ले सकती थीं ।
- युद्ध में कबीले का नेतृत्व राजा करता था । युद्ध के लिए गविष्टि शब्द का प्रयोग किया गया है , जिसका अर्थ है— गायों की खोज ।
- दसराज्ञ युद्ध का उल्लेख ऋग्वेद के 7 वें मंडल में है यह युद्ध परुषणी ( रावी ) नदी के तट पर सुदास एवं दस जनों के बीच लड़ा गया , जिसमें सुदास विजयी हुआ ।
- ऋग्वैदिक समाज चार वर्णों में विभक्त था । ये वर्ण थे – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र । यह विभाजन व्यवसाय पर आधारित था । ऋग्वेद के 10 वें मंडल के पुरुषसूक्त में चतुर्वणों का उल्लेख मिलता है । इसमें कहा गया है कि ब्राह्मण परम पुरुष के मुख से क्षत्रिय उनकी भुजाओं से , वैश्य उनकी जाँधों से एवं शूद्र उनके पैरों से उत्पन्न हुए हैं ।
- आर्यों का समाज पितृप्रधान था समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार या कुल थी , जिसका मुखिया पिता होता था जिसे कुलप कहा जाता था ।
- स्त्रियाँ शिक्षा ग्रहण करती थीं । ऋग्वेद में लोपामुद्रा घोषा सिकता आपला एवं विश्वास जैसी विदुषी स्त्रियों का वर्णन है । गार्गी याज्ञवल्क्य को वाद – विवाद की चुनौती दी थी ।
- स्त्रियाँ इस काल में अपने पति के साथ यज्ञ कार्य में भाग लेती थीं ।
- बाल विवाह एवं पर्दा – प्रथा का प्रचलन नहीं था ।
- विधवा अपने मृतक पति के छोटे भाई ( देवर ) से विवाह कर सकती थी ।
- जीवन भर अविवाहित रहनेवाली महिलाओं को अमाजू कहा जाता था ।
- जीविकोपार्जन के लिए वेद – वेदांग पढ़ानेवाला अध्यापक उपाध्याय कहलाता था ।
- आर्यों का मुख्य पेय पदार्थ सोमरस था यह वनस्पति से बनाया जाता था ।
- आर्य मुख्यतः तीन प्रकार के वस्त्रों का उपयोग करते थे । 1. वास 2. अधिवास और 3. उष्णीष, अन्दर पहननेवाले कपड़े को नीवि कहा जाता था ।
- महर्षि कणाद को भारतीय परमाणुवाद का जनक कहा गया है ।
- आर्यों के मनोरंजन के मुख्य साधन थे — संगीत , रथदौड़ , घुड़दौड़ एवं यूतक्रीड़ा |
- आर्यों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन एवं कृषि था ।
- गाय को अघ्न्या न मारे जाने योग्य पशु की श्रेणी में रखा गया था । गाय की हत्या करने वाले या उसे घायल करने वाले के लिए वेदों में मृत्युदंड अथवा देश से निकाले की व्यवस्था की गई है ।
- आर्यों का प्रिय पशु घोड़ा एवं सर्वाधिक प्रिय देवता इन्द्र थे ।
- आर्यों द्वारा खोजी गयी धातु लोहा थी जिसे श्याम अयस् कहा जाता था ताँबे को लोहित अयस् कहा जाता था ।